Search This Blog

Saturday, June 19, 2010

ना मैं तुलसी हू....

मैं ना तो कोई तुलसीदास
जो दोहावली सजाऊँ,
ना ही मैं कबीर कोई
कि भजनमाल बुन पाऊँ !

सूरदास की भक्ति कहाँ
जो गीत श्याम के गाऊँ,
ओज सुभद्रा सा भी नहीं,
ना टैगोर का सुर बना पाऊँ !

फिर भी दिल में ये चाहत है,
में दिल की बात सुनाऊँ,
और प्यार दोस्तों का कहता है,
में भी कलम उठाऊँ !

मुझमे ऐसा कुछ भी नहीं,
कि में कुछ भी बन जाऊं,
प्यार आपका होगी वजह,
जो कुछ सार्थक कह पाऊँ !

मित्रों की प्रेरणा शक्ति मेरी,
अब कैसे ये समझाऊँ,
थाम के उँगली उन सब की,
शायद मंजिल पा जाऊं !

नहीं दिल में ऐसा शौक़ है,
कि गुरु जी मैं बन जाऊं,
अदना सा रहूँ मैं सदा बना,
बस रवि कुमार कहलाऊँ !

No comments:

Post a Comment