मैं ना तो कोई तुलसीदास
जो दोहावली सजाऊँ,
ना ही मैं कबीर कोई
कि भजनमाल बुन पाऊँ !
सूरदास की भक्ति कहाँ
जो गीत श्याम के गाऊँ,
ओज सुभद्रा सा भी नहीं,
ना टैगोर का सुर बना पाऊँ !
फिर भी दिल में ये चाहत है,
में दिल की बात सुनाऊँ,
और प्यार दोस्तों का कहता है,
में भी कलम उठाऊँ !
मुझमे ऐसा कुछ भी नहीं,
कि में कुछ भी बन जाऊं,
प्यार आपका होगी वजह,
जो कुछ सार्थक कह पाऊँ !
मित्रों की प्रेरणा शक्ति मेरी,
अब कैसे ये समझाऊँ,
थाम के उँगली उन सब की,
शायद मंजिल पा जाऊं !
नहीं दिल में ऐसा शौक़ है,
कि गुरु जी मैं बन जाऊं,
अदना सा रहूँ मैं सदा बना,
बस रवि कुमार कहलाऊँ !
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