Search This Blog

Saturday, August 28, 2010

मन में आनंद भयो माँ की बर्णन में ,

मन में आनंद भयो माँ की बर्णन में ,
अंग अंग खिल गयो माँ की दर्शन में ,
तुने बुलाया माँ द्वार तेरे आया - द्वार तेरे आया माँ द्वार तेरे आया,
मन को सकून मिला तेरे चरनन में ,
अंग अंग खिल गयो माँ की दर्शन में ,

तुही हैं अम्बा माँ तुही जगदम्मा ,
भक्तो की रक्छा करनेवाली अम्बा ,
भक्तो पे अपने माँ करना तू दया - करना तू दया माँ करना तू दया ,
माँ अब भर दे तू भक्ति मेरे मन में ,
अंग अंग खिल गयो माँ की दर्शन में ,

तेरे तो चाहने वाला माँ जगदम्मा ,
हो नहीं सकता ओ कभी निकमा ,
मन में माँ तू यैसी ज्ञान भर दे - यैसी ज्ञान भर दे माँ यैसी ज्ञान भर दे ,
की गुरु बिताये दिन तेरे चरनन में ,
अंग अंग खिल गयो माँ की दर्शन में ,

हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,
तेरे चाह में पड़ कर हमने ये क्या कर डाला ,
घर में बच्चे भूखे सो गए चल रहा हैं प्याला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

रोज कमाए रोज उड़ाये खाली हाथ घर को जाये ,
बीबी जब कुछ पूछे तो भईया जोर का चाटा खाये ,
सिलसिला यह चल रहा हैं नहीं अब रुकने वाला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

दोस्तों की दोस्ती से यारो है यह शुरू होती ,
शौक से आगे बढती फिर आदत का रुप यह लेती ,
क्या बतलाऊ इसने तो जीना मुस्किल कर डाला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

सोच था इक सपना था आगे तक जाने की ,
जाने कैसे बहक गया मैं नजर लगी ज़माने की ,
सोचा था क्या मैंने और ये क्या कर डाला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

रोज रोज ये राहों में नया दोस्त बनता हैं ,
पड़ा देख कर गट्टर में कोई घर ले आता हैं ,
मोहल्ले में इज्जत को ये चवनी का कर डाला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

पाकेट में है कुछ नहीं बड़ी बड़ी बोल आती हैं ,
दो चार घुट जब ये अन्दर में चली जाती हैं ,
बड़े बड़े को ये तो कंगाल ही कर डाला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

घर से निकला ऑफिस भाई मैं शान से ,
ऑफिस से जब घर चला बहक गया इमान से ,
दोस्तों की झुण्ड मिली और कचरा कर डाला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

एक ख़ुशी ये देता हैं भेद भाव मिटाकर ,
जाती धर्म कोई हो भईया रखता हैं मिलकर ,
कितना अच्छा काम किया ये बुरा करनेवाला ,
हाय रे मदिरा हाय रे - हाय रे मधुशाला ,

Wednesday, August 25, 2010

राखी आई चली गई !!

राखी आकर चली गई ,
कही मस्ती छाई ,
चली खूब मिठाई ,
बहना ने भाई की ,
कलाई पे बांधी !!

कहीं ये ख़ुशी दे गई ,
और कही गम का गुबार
देकर चली गई !!

अब एक दो रूपये में ,
राखी मिलती नहीं ,
दुखहरण के बेटी बुधिया के पास ,
चावल खरीदने के बाद,
पांच रुपये का सिक्का बचा ,
दाल की जगह ,
खरीद ली राखी ,
मिठाई के नाम पर ,
लिया बताशा
बाह रे दुनिया वाले ,
कैसा अजब तमाशा ,
तेरी कुदरत
कहीं हंसा गई
कहीं रुला गई ,
राखी आई चली गई !!

कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,

कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं,
नहीं विश्वास तो मल्टीप्लेक्स पर देखिये,
भीड़ लगी रहती टिकट सौ के करीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,

ट्रेनों में अक्सर आरक्षण फुल रहता हैं ,
अग्रिम पश्चात स्कार्पियो महीनो बाद मिलता हैं ,
हर किसी के पास पैसा बनाने की तरकीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,

शराब की दुकानें लोगो से भरी रहती हैं ,
हवाई जहाज में भी सीट नहीं मिलती हैं ,
पेपर पर राष्ट्र हमारा उन्नति के करीब हैं ,
कौन कहता है हमारा हिंदुस्तान गरीब हैं ,

रक्तबीज

चंडी रूप धारण किए
आँखों में दहकते शोले लिए
मुख से ज्वालामुखी का लावा उगलती
बीच सड़क में
ना जाने वह किसे और क्यों
लगातार कोसे जा रही थी
सड़क पर आने जाने वाले सभी
उस अग्निकुंड की तपिश से
दामन बचा बचा कर निकल रहे थे
ना जाने क्यों सहसा ही .....
मुझ में साहस का संचार हुआ
मैंने पूछ ही लिया
बहना....,
क्या माजरा है ?
क्यों बीच सड़क में धधक रही हो ?
उसकी ज्वाला भरी आँखों से
गंगा यमुना की धार बह निकली
रुंधे गले से उसका दर्द फूट पड़ा ...
भय्या !!!
एक कलमुंहे की पोल खोल रही हूँ ,
क्या किया उसने ? मेरा सवाल था ..
बोली... अभी सुनाती हूँ
पूरी दास्तान ,
मेरा बेकार पति
हर वक़्त मेरा खून और दारू पीता था ,
हफ्ते में इसकी दो चार रातें
गुज़रती थी थाने में
मैं थाने जाती थी - इसको छुड़ाती थी,
पैसा तो था नहीं ..
बस ....दरोगा की हो जाती थी ,
सिलसिला चलता रहा ये कल तक ,
आज फिर मेरा बेकार पति थाने में बंद है
लेकिन वो दरोगा.......
आज मेरी जगह
मेरी बेटी को मांग रहा है वो कमबख्त,
आज
या तो मैं खुद को मिटा दूंगी
या इसके रक्त से खप्पर भरूँगी,
भले कुछ हो जाए,
इस रक्तबीज को जिंदा नहीं छोडूंगी

Monday, August 2, 2010

भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,

भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,
सोहराबुदीन कौन था जिसको दिए सब मिटाए ,
कोई कहता था आतंकबादी था वो बड़ा हठीला ,
किया क्यों उसके कारण मुश्किल किसी का जीना ,
मर गया तो मिट गई बाते क्यों उल्टी हवा बहाए ,
भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,
जो ऐसा काम किया क्यों उसे सूली पे चढाते हो ,
अफजल गुरु को जो बचाए उसको सलाम बजाते हो ,
जागो हिंद के जागो भाई करो उसको सलाम ,
जो इस तरफ के कालिख पोतो के काम करे तमाम ,
सिद्ध हुआ था आतंकबादी मारे तो तगमा क्यों न पहनाएं ,
भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,
इस तरह जो जाँच होगी तो हिंद का क्या होगा भाई ,
मारेंगे सब बुद्धिजीवी और मस्ती करेगा कसाई ,
देखो क्या हाल हुआ कसाब हमारा मेहमान हुआ ,
जिसका उसने लहू बहा वही उसका मेज़बान हुआ
उलटी गिनती शुरू होगी दिल्ली वालो को समझ न आए ,
भाई कोई मुझे बताये गुरु पागल को समझाए ,