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Saturday, October 22, 2011

पागल मन बाऊराय हैं कोई इसे समझाय ,
बीत गया जो समय बहुरि कभी ना आये ,
.
जिसकी जो गति वो लिखा वही बना तक़दीर ,
होनी तो होके रहेगी सहज हो या गंभीर ,
.
दुःख से घबराओ नहीं हैं दुःख सुख के आधार,
दुःख से जित जावोगे बदलो नहीं बेवहार ,
.
बात जो मन को लगे तू ना किसी को बोल ,
चाहिए जो प्यार तुझे सोच समझ मुह खोल ,
.

नारी की इज्जत करो ना देखो बन बेईमान ,
कन्या हैं दुर्गा रूपी और ब्याही माँ समान ,
.
जो करो मन से करो जो भी मन को भाय,
उसको ही सच मानिये जो जग होत सुखाय ,
.
जो सोया वो खो दिया जागे सब कुछ पाय ,
जो पर में सुख ढूंढे अपना लिया बनाय ,

Monday, September 5, 2011

गुरु

गुरु
एक यैसा शब्द ,
जिसे सुनते ही ,
हाथ जुड़ जाते हैं ,
सर झुक जाते हैं ,
पाव रुक जाते हैं ,
और मुख से ,
निकलता हैं ,
बस एक ही शब्द ,
प्रणाम सर ,

उनके आदर्शो को याद कर ,

उनके आदर्शो को याद कर ,
आइये हम सब मिलकर ,
झूठ ही सही जीवन में उतर लें ,
आज शिक्षक दिवस मना लें ,
ये औपचारिकता ही सही पर ,
वाह-वाही उठाले एक गोष्टी कर ,
उनके आदर्शो को याद कर ,
आइये हम सब मिलकर ,
.
आज सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन ,
उनके आदर्श व आचरण पे चर्चा के दिन ,
आज के शिक्षक जो लगे हैं ,
पैसे के लिए आदर्श में नंगे हैं ,
आचरण उनकी देख समझकर ,
बच्चे भला समझते दूर रहकर ,
उनके आदर्शो को याद कर ,
आइये हम सब मिलकर ,
.
गुरु की गरिमा धूमिल करते ,
छात्र - छात्राओ को ये कहते ,
कभी शारीरिक कभी मानसिक ,
मिटा रहे ये धरातल वास्तविक ,
ये नीचता को आदर्श बनाकर ,
इनके अन्दर का शैतान मिटाकर ,
उनके आदर्शो को याद कर ,
आइये हम सब मिलकर ,

Thursday, August 11, 2011

घनाक्षरी छंद

घनाक्षरी छंद

(१).
पर्व रक्षा बंधन का, खुशियाँ है लेके आया,
राखी बांधे बहनिया, भय्या मुस्कात हैं !

पूछती है बहना ये, तोफा कैसा दोगे भाई,
आरती दिखाते बोली, क्या तुम्हारे हाथ हैं ?

राखी बांधूंगी मैं नहीं, पापा से बोल मैं दूंगी,
चाकलेट देता नहीं, खाली मेरा हाथ है !

आपस के झगडे ये, अच्छे नहीं बहना री,
सबसे सौगात बड़ी, अपना ये साथ हैं !
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(२)
सावन का मास आया, भय्या मोरे नहीं आए,
राखी बांधूंगी मैं किसे, मन घबराए हो !

कहे तू रुलाए भाई, काहे तू सताए भाई
पावन पर्व हैं आजा , बहना बुलाए हो !

नहीं मांगूंगी खजाना, खाली हाथ चले आना,
भय्या मेरे पास आजा, जिया खिल जाए हो !

सबको दे रघुराई, एक प्यारा प्यारा भाई ,
ताकि ये जहान सारा, खुशियाँ मनाए हो !
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(३)
राखी के पवन पर्व , आओ ये कसम खाएं ,
तोहफे में बहनों को , आजादी दिलाएंगे !

गली और नुक्कड़ों पे, खड़े सब लफंगों को ,
सौंपेंगे पुलिस को या, मार के भगायेंगे !

एक बार मौका देंगे, उनको सुधरने का,
फिर खोज खोज कर, राखी बंधवाएंगे !

ऐसा गर हो गया तो , बहने भी खुश होंगी,
फिर हम साथ साथ , खुशिया मनाएंगे !
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(४)
सावन महीना आया, फोन किया बहना ने
चार दिन पहले ही, भैया हम आयेंगे !

पिंकी भी बहुत खुश, अमन मचाये शोर ,
दोनों का ये कहना है, मामा घर जायेंगे !

जीजा जी के लिए सूट, बहना के लिए साड़ी ,
बच्चों को खिलोने ढेरों, हम दिलवाएंगे !

जो कहेगी लेके देंगे, बस तुम चली आना,
तेरी राहों भैया भाभी, पलकें बिछायेंगे !
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(५)
भूल से ही बाँधी चाहे, राखी कान्हा की कलाई ,
जब कोई नहीं साथ, वो ही आया भाई हैं !

भाई हो तो कृष्णा सा, आया जो पुकार सुन
जिसने पाँचाली की भी , इज्जत बचाई हैं !

कंस भी था एक भाई, बहना को कैदी किया,
भानजे के हाथों मरा, कड़वी सच्चाई है !

एक भाई रावण था, सुन झूठ बहना का,
भूल ऐसी कर बैठा, लंका भी गंवाई है ! ,
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(६)
भाई बहाना का नाता, पावन पुनीत बड़ा,
इतिहास में भी पढ़ी, इसकी बड़ाई हैं !

भाई जब नहीं आए , परेशान बहना हो ,
भाई आने पर फिर, ख़ुशी घर आई है !

राखी का त्यौहार आया, खुश भाई बहना हैं,
माता पिता की भी आँखें, आज मुस्काई हैं !

जिस घर बहना न, पूछे उन्हें जाके कोई,
कितनी अखरती हैं , सूनी जो कलाई हैं !
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(७)
सावन के महीने में, आता ये पावन पर्व ,
सभी के हर्षित मन , दे रहे बधाई जी !

कहूँ ओर हरियाली , तन पर हरी साडी ,
बहना ने हरी चूड़ी, खूब खनकाई जी !

भय्या का संदेसा पाके, भागी भागी चली आई,
आशीषों के दुआयों के, थाल लेके आई जी !

बहना को आते देख, भय्या को लगे है ऐसे,
गया हुआ बचपन, साथ लेके आई जी !
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"भाई बहिन चालीसा"
सावन के मास आइल जब इ मन में करी बिचार ,
अईहान भईया हमारो अब रह गइल दिन चार ,
फोन करी हम बोलनी इ पावन तेवहार ,
आके हमसे मिलहु देखिले राह तोहर ,

ये भईया तू गुनी आगर ! तुही बाड़ प्रेम के सागर !!
भाई तू अतुल्य सब जाना ! हमारे भाई अमन हैं नामा !!
देखा आइल सावन सतरंगी ! तुही हमर बचपन के संगी !!
तोहसे मिलल भइल बरिसा ! एबार कर रुख येही दिसा !!
हाथ में लिए राखी ताकें ! हर पल हम राह पर झाके !!
भाई तोहसे बा इतना बंदन ! आ जईहा जहिया रक्षा बंधन !!
बाड़ तू गुनी बड़ चातुर ! आवा मिले तुहू होके आतुर !!
माई बाबूजी के सुनिह बतिया ! भउजी के रहीहा मन बसिया !!
थोडा सा मोह हमपे दिखावा ! मन करे जबे मिले आवा !!
गावं से अच्छा क्या शहर तुम्हारे ! आकर देखो गावं हमारे !!
बचपन आप यही पे बिताये ! बाबूजी रहते उर से लगाये !!
बालपन में हुई खूब बराइ ! तुम हो मेरे भोले भाई !!
पूरा गावं तोहरे जस गावे ! इहे बोली मुखिया सीना लगावे !!
गणित बिज्ञान नाही तुमसा ! हिंदी में नही थे हमसा !!
बिगन मगरू बेहाल इहा के ! बोला समाचार उहा के !!
तू उपकार बिगन पे कईला ! बीस साल भइल लंगर भईला !!
तोहर बात मंगरू ना मनले ! आजीवन पछतात उ रहले !!
रोपल रहे खेत में आलू ! वो के कोड़त रहे भोलवा चालू !!
फिर तू बसल शहर में जाई ! बाड़ उहा अब सभ के भुलाई !!
काम बढिया पईला तुहू जाते ! बड़का भईला उहा तुहू कमाते !!
तोहरे दुआरे बा कुत्ता रखवारे ! घुसे ना कोई बिना पुकारे !!
तहरा घर में सब सुख साधन ! लक्ष्मी झरे ली तोहरा आँगन !!
अपना में तू बाड़ आपे ! तहरा के देख बड़लोग कापे !!
पुलिस वाला निकट नही आवे ! तोहर नाम जे केहू बतावे !!
धाईले बा रोग पावत बाड़ पीड़ा ! रोग बड़ा भईल गंभीरा !!
संकट में डाक्टर बचावे ! तन मन धन सेई लगावे !!
बहुत कमइला बनला राजा ! अब त बाबु तू घरे आजा !!
गावं में तुहू पईसा लाव ! एगो बढ़िया अटारी बनाव !!
चारो ओर होई नाम तोहर ! होई प्रसिधी येहर ओहार !!
गरीबन के बना रखवाला ! तोह्पे खुश होई ऊपर वाला !!
सबसे सुन्दर तू हमार भ्राता ! तहरा लगे बाड़ी लक्ष्मी माता !!
कईनि ह फोन लागल बा आशा ! आइबा तुहू येही सावन मासा !!
तोहरे दरस भईया हम पाई ! जिअब उम्र दस बरस बढाई !!
एक बार तू मिलता आई ! खुश हो जाईत इ मन भाई !!
आउर कुछ चित में नइखे धरत ! आ जाईत कईसहु कुछ करत !!
मिलबा त मिट जाई सब पीरा ! चर्चा होई बहुत गंभीरा !!
जै जै जै हनुमान गोहराई ! करती कुछ जे भाई चली आई !!
तहरो सत बार पूजा होई ! फफक के अब हमहू रोईं !!
बीते ना येही सावन महिना ! भाई के मोरे सन्मुख कर दिना !!
रवि गुरु के माफ़ करना ! हरदम मेरे साथ में रहना !!

पावन महिना सावन भर पूजा करू मन लाई !
राखी के दिन सामने प्रभु रहे हमारा भाई !!

Saturday, August 6, 2011

चलो गावं की ओर

बहुत रुलाया शहर ,
दिया फिजा में जहर घोल ,
खुश रहना हैं तो यारो ,
चलो गावं की ओर .
हर तरफ हैं मोटर ,
जो शोर मचाती हैं ,
कसम से यारो दिन क्या ,
रातों को नींद नहीं आती हैं ,
प्यारा नहीं लगता हैं
यारा यहा का भोर ,
खुश रहना हैं तो यारो ,
चलो गावं की ओर ,
यहाँ के तलाब को देखो ,
कितना गन्दा पानी हैं ,
चले जावो किसी बस्ती में ,
हर तरफ परेशानी हैं ,
खुशियाँ तो सिमट गई हैं ,
ऊँची मंजिल की ओर ,
खुश रहना हैं तो यारो ,
चलो गावं की ओर ,
एक घर में पहुच गया ,
समझा देख के अन्दर का मंजर
शहर हैं पैसे वालो का ,
क्या ठाठ हैं उसके अन्दर ,
कितना सुन्दर तलाब बना ,
स्विमिंग पुल कहलाता हैं ,
बच्चो को देखा मैंने ,
पैसा देकर पार्क में जाता हैं ,
हम गरीबो के पास ,
नहीं हैं इसका तोड़ ,
खुश रहना हैं तो यारो ,
चलो गावं की ओर .

Thursday, August 4, 2011

अब किस के लिए ?

अधुरा जीवन जिऊँ ,
अब किस के लिए ?

तू उनका ही नहीं हुआ .
जिन्होंने तुझे जन्म दिया,
बोल जी रहा हैं तू ,
अब किस के लिए ?

पैसा सब कुछ नहीं हैं ,
मगर पैसा ना हो ,
तो कुछ भी नहीं हैं ,
और तू पैसे के लिए ,

घरवार छोड़ दिया ,
तू आया साथ लाया ,
अपने बीबी और बच्चो को ,
उनको छोड़ दिया ,
सपने में भी उनको ,
एक गिलास पानी दिया ,
वो तुम्हारे पैसे को नहीं ,
तुम्हारी राह देखते हैं ,
उनके इस अधूरे जीवन के ,
तुम बस तुम जिम्मेवार हो ,

जब तुम्हारे बच्चे चले जायेंगे ,
इसी तरह से तुम्हे छोड़ कर ,
तो फिर मत सोचना ,
अधुरा जीवन जिऊँ ,
अब किस के लिए ?

एक बार पीकर देखो ये जीवन का जाम हैं ,

एक बार पीकर देखो ये जीवन का जाम हैं ,
आपके ही लिए है ये आप ही का नाम हैं ,
पहले आपको मिला माँ बाप भाई का साया ,
बचपन में मस्त रहना ये आपका काम हैं ,
दोस्त मनाएँ खुशिया मनाये यौवन में जब पाँव धरे ,
गलती कर गए मस्ती में ये भूल की शाम हैं ,
जो सुधरा वही बन गया अब चेहरा आदर्श का ,
उम्र की ढलती बेला में दीखता तमाम है ,
पावन कोमल निर्मल सुबह के जैसा बचपन हैं ,
दोपहर हैं यार जवानी ढलती बुढ़ापा शाम हैं ,
मस्ती में जो दिन बिताये वो बड़े अनमोल थे ,
जो बचा हैं जीवन अब भी इसका दाम हैं ,
सदगुण अवगुण जो भी पीना हो आपके पसंद का ,
सदगुण में मेरे भाई उज्जवल ऊंचा नाम हैं ,
चार दिन की जिन्दगी ये तीन तूने बिता दिए ,
चौथे पे अब ध्यान दो उसका रखवाला राम हैं ,

कैसे कहू मैं दिल की ..

कैसे कहू मैं दिल की ......
दिल में ही रह गई .
ख्वाब अधुरा रह गया ,
ख्वाबो पे छुरी चल गई ,
कैसे कहू मैं दिल की ......
दिल में ही रह गई .
बालपन की मन में ब्यथा ,
तन सयानी हो गई ,
लोगो की नजरो में आना ,
जवानी दुश्मन हो गई
कैसे कहू मैं दिल की ......
दिल में ही रह गई .
अपने होते ख्वाबें होती ,
मन की मुरादें मिल जाती ,
अपनों ने जो दगा किया ,
जिगर ये छलनी कर गई ,
कैसे कहू मैं दिल की ......
दिल में ही रह गई .

अब मेरे ख्वाबो को जीने दो ,

अब मेरे ख्वाबो को जीने दो ,
बचपन खेलने को तरस गया ,
हाथो में किताब पड़ने से ,
जवानी कर्मो में गुजर गया ,
और आगे बढ़ने में ,
पूरा चला ढाई कोस ,
वही कहावत हो गई ,
इस पड़ाव पे मन ने ,
ख्वाबो को जगाया हैं ,
अब मुझे मत परेशान करो ,
अब मेरे ख्वाबो को जीने दो ,

हरे भरे हैं खेत सुहाने ,

हरे भरे हैं खेत सुहाने ,
देख के मचले ये दिवाने ,
जैसे होती सुबह की बेला ,
चिडियों का कोलाहल सुन के ,
उठ के प्रथम बैलो को ,
लगते हैं ये तो खिलने ,
हरे भरे हैं खेत सुहाने ,
देख के मचले ये दीवाने ,
सुबह सुबह ले बैलो को ,
कंधे पे ये हल संभाले ,
दिन भर मेहनत करने वाले ,
शाम को लौटे थके हरे ,
सकून देती हरियाली ने ,
हरे भरे हैं खेत सुहाने ,
देख के मचले ये दिवाने ,
हरियाली तो मन को भाती ,
ख़ुशी बढे जब दाने आती ,
लहलहाता खेतो को देख ,
नाचने लगते ये मस्ताने ,
हरे भरे हैं खेत सुहाने ,
देख के मचले ये दिवाने,

मन की मस्ती ,

मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,
रिमझिम रिमझिम ,
बरसे हैं बादल ,
तड़पे हैं दिल ,
बेकरारी का आलम ,
पिया पिया बोले ,
मन का पपिहरा ,
होवे पागल मन ,
तडपाये जियरा ,
जब सावन आये ,
हरियाली लाये ,
मन मस्तिष्क में ,
ख्याल ये लाये ,
मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,

दो कवितायेँ ..

"एक"
वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,
अंधे का पुत्र अंधा द्रोपदी जो बोल दिया ,
वही शब्द बन गए महाभारत की आधारशिला,
वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,

तुम मुझे खून दो - मैं तुम्हें आजादी दूंगा,
नेता जी सुभाषचंद्र बोस ये शंख नाद किया,
वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,

आजादी हमारा जन्म सिद्ध अधिकार हैं,
बाल गंगाधर तिलक की ये बात बल भर दिया,
वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,

लाल बहादुर शास्त्री आप को तो याद हैं,
जय जवान जय किसान ऐसा बल भर दिया,
वो ओजस्वी शब्द जो सब कुछ बदल दिया,

"दो"
भाव भरा हृदय तन-मन को प्रभावित करे,
भावनाओ की अभाव ही विकृतियों को जन्म दे,
हृदय, मन एवं तन हैं जीवन के अभिन्न अंग,
इनका सामंजस्य मानसिक स्वास्थ्य करे,
भाव भरा हृदय तन-मन को प्रभावित करे,

आधुनिक विज्ञान से इसको जोड़ देख लो,
वो भी यही मानता तन और मन एक हैं,
तन पे लगे घाव तो मन भी महसूस करे,
भाव भरा हृदय तन-मन को प्रभावित करे,

सृष्टि का सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी मनुष्य

सृष्टि का सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी मनुष्य ,
अपने भाग्य एवं भविष्य का निर्माता वो ,
अक्लमंदी के प्रदर्शन में प्रकृति के बिरोध करे ,
जिसे हम विकास कहते हैं वो विनाश का द्वार हैं ,
हम प्राकृतिक संपदाओं को जो नष्ट कर रहे हैं ,
धारा प्रदूषित होने से हम मृत्यु को वरण कर रहे हैं ,
हर कोई जाने-अनजाने में खुद को मारना चाहता हैं ,
नहीं तो धूम्रपान मद्यपान को वो वरण नही करता ,
ये सब समझदारो की नासमझी नही तो क्या हैं ,
इसे हर कोई प्रत्यक्ष देख सकता हैं फिर भी ...........

उम्र के इस पड़ाव पर

१.
उम्र के इस पड़ाव पर
खड़ा हूँ ये सोच कर
क्या खोया क्या पाया
समझूँ सबकुछ देख कर
वही पर हूँ
जहाँ पर था
उस समय भी
मैं ही था
आज भी हूँ
उस समय
मैं बालक था
लड़कपन और ठिठोली करता
आज भी हूँ
वही बालक
मगर अंतर हैं
तब वो पुत्र था
आज ये पिता है.


२.
मैं स्कूल नहीं जाऊँगा ,
जब ये शब्द मुझे याद आते हैं
कसम से
बहुत याद आते हैं.
दीदी कहती थी चौकलेट दूँगी
चल स्कूल, तेरा बैग मैं ढोऊँगी
तब मैं
क्या-क्या नहीं सुनाता था
बहाने खूब बनाता था
हरदम पेट में दर्द रहता था
आजभी उस दर्द को बहुत महसूस करता हूँ.
पागलपन वो सारा कैसे भुलाऊँगा

मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
मैं कैसे सब भुलाऊँगा ??

Wednesday, August 3, 2011

ओ बी ओ अष्टक

एक समय रवि साथ लिए सब,
बागी गणेश प्रीतम जी आयो,
ओबीओ का जब जनम भयो तब,
ये ख़ुशी लिए बिजय जी आयो,
सभे मिली जब किये बिनती,
योगराज जी प्रधान बने हमारो,

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!

गजल की बात राणाजी शुरू कियो,
तब आगे बढ़ी तिलकराज जी आयो,
योगराज जी साथ दियो तब,
अम्बरीश जी किये बिचारो,
शुरू किये सब मिली मुशायरा,
सौरभ जी और अभिनव हमारो.

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!

मनोज जी सक्रिय सदस्य बने तब,
खोज ओबीओ के सबको भयो,
प्रत्येक महीने कोई न कोई तो,
दूसरे महीने नविन जी पधारो,
आशीष शेषधर जी के पड़े,
तब ध्रमेंद्र जी आये हमारो,

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!

आगे महीना बंदना जी का,
फिर आये अभिनव भाई हमारो,
आगे आये वीनस केशरी जी,
फिर अम्बरीश जी शोभा बढायो,
एडमिन चुने तिलक राज जी को,
फिर आये सौरभ और शन्नो हमारो,

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!

चित्र से काब्य शुरू हुआ तब,
योगेन्द्र बहादुर जी बाजी मारो,
आगे चली सौरभ अभिनव,
तब अलोक जी और लता जी आयो,
चौथी बार किसानो की बातें,
फिर सौरभ संग मर्मज्ञ पधारो.

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!

सलिल हिंदी की कक्षा शुरू किये तब,
हिंदी के चाहत सभे मन भायो,
बागी गुरु योगराज संगे सब,
काम भयो ये मंगल यारो,
चलाई कक्षा तब सलिल जी,
बढाई जानकारी अब हमारो,

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!

समूह पर जब ध्यान दिए गणेश जी,
भोजपुरी में गुरु सतीश जी आयो,
अभियंता व धार्मिक बाल कोना,
सब साहित्य सब के मन भायो,
आगे बढे तब एडमिन जी,
आपन नेपाल के ग्रुप बनायो,

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!

जो लिखना था वो लिख दिए,
अब गुरु के कामो पे करो बचारो,
साथ बनी रहे हम सभी का,
योगराज जी ध्यान रखो हमारो,
जाके नाम छूटा हो गुरु जानो,
आपके पास हैं माफ़ी हमारो ,

को नहीं जानत हैं ओबीओ पर ,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो !

चुनी हुई कवितायेँ ,

चुनी हुई कवितायेँ ,
हम चुन चुन के लायें ,
देखो जरा गौर से ,
अच्छी लगेगी ये ,
सबका मन भाए ,
चुनी हुई कवितायेँ ,
हम चुन चुन के लायें ,
एक किसी का नाम लिया तो ,
अच्छा न कहलायेगा
भरी हैं ये धरती कविओ से
पढ़ के मजा तो आएगा ,
एक एक पेज खोल ,
पढ़ें और मुस्काएं ,
चुनी हुई कवितायेँ ,
हम चुन चुन के लायें ,
श्रिंगार रस का चाहिए ,
या हास्य रस ले आयें ,
बिर रस भाती हैं ,
या भक्ति रस घुलवायें ,
बहुत से रस पड़े हैं
आप आये और पढ़ते जाएँ ,
चुनी हुई कवितायेँ ,
हम चुन चुन के लायें ,