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Thursday, August 11, 2011

घनाक्षरी छंद

घनाक्षरी छंद

(१).
पर्व रक्षा बंधन का, खुशियाँ है लेके आया,
राखी बांधे बहनिया, भय्या मुस्कात हैं !

पूछती है बहना ये, तोफा कैसा दोगे भाई,
आरती दिखाते बोली, क्या तुम्हारे हाथ हैं ?

राखी बांधूंगी मैं नहीं, पापा से बोल मैं दूंगी,
चाकलेट देता नहीं, खाली मेरा हाथ है !

आपस के झगडे ये, अच्छे नहीं बहना री,
सबसे सौगात बड़ी, अपना ये साथ हैं !
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(२)
सावन का मास आया, भय्या मोरे नहीं आए,
राखी बांधूंगी मैं किसे, मन घबराए हो !

कहे तू रुलाए भाई, काहे तू सताए भाई
पावन पर्व हैं आजा , बहना बुलाए हो !

नहीं मांगूंगी खजाना, खाली हाथ चले आना,
भय्या मेरे पास आजा, जिया खिल जाए हो !

सबको दे रघुराई, एक प्यारा प्यारा भाई ,
ताकि ये जहान सारा, खुशियाँ मनाए हो !
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(३)
राखी के पवन पर्व , आओ ये कसम खाएं ,
तोहफे में बहनों को , आजादी दिलाएंगे !

गली और नुक्कड़ों पे, खड़े सब लफंगों को ,
सौंपेंगे पुलिस को या, मार के भगायेंगे !

एक बार मौका देंगे, उनको सुधरने का,
फिर खोज खोज कर, राखी बंधवाएंगे !

ऐसा गर हो गया तो , बहने भी खुश होंगी,
फिर हम साथ साथ , खुशिया मनाएंगे !
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(४)
सावन महीना आया, फोन किया बहना ने
चार दिन पहले ही, भैया हम आयेंगे !

पिंकी भी बहुत खुश, अमन मचाये शोर ,
दोनों का ये कहना है, मामा घर जायेंगे !

जीजा जी के लिए सूट, बहना के लिए साड़ी ,
बच्चों को खिलोने ढेरों, हम दिलवाएंगे !

जो कहेगी लेके देंगे, बस तुम चली आना,
तेरी राहों भैया भाभी, पलकें बिछायेंगे !
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(५)
भूल से ही बाँधी चाहे, राखी कान्हा की कलाई ,
जब कोई नहीं साथ, वो ही आया भाई हैं !

भाई हो तो कृष्णा सा, आया जो पुकार सुन
जिसने पाँचाली की भी , इज्जत बचाई हैं !

कंस भी था एक भाई, बहना को कैदी किया,
भानजे के हाथों मरा, कड़वी सच्चाई है !

एक भाई रावण था, सुन झूठ बहना का,
भूल ऐसी कर बैठा, लंका भी गंवाई है ! ,
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(६)
भाई बहाना का नाता, पावन पुनीत बड़ा,
इतिहास में भी पढ़ी, इसकी बड़ाई हैं !

भाई जब नहीं आए , परेशान बहना हो ,
भाई आने पर फिर, ख़ुशी घर आई है !

राखी का त्यौहार आया, खुश भाई बहना हैं,
माता पिता की भी आँखें, आज मुस्काई हैं !

जिस घर बहना न, पूछे उन्हें जाके कोई,
कितनी अखरती हैं , सूनी जो कलाई हैं !
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(७)
सावन के महीने में, आता ये पावन पर्व ,
सभी के हर्षित मन , दे रहे बधाई जी !

कहूँ ओर हरियाली , तन पर हरी साडी ,
बहना ने हरी चूड़ी, खूब खनकाई जी !

भय्या का संदेसा पाके, भागी भागी चली आई,
आशीषों के दुआयों के, थाल लेके आई जी !

बहना को आते देख, भय्या को लगे है ऐसे,
गया हुआ बचपन, साथ लेके आई जी !
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