घनाक्षरी छंद
(१).
पर्व रक्षा बंधन का, खुशियाँ है लेके आया,
राखी बांधे बहनिया, भय्या मुस्कात हैं !
पूछती है बहना ये, तोफा कैसा दोगे भाई,
आरती दिखाते बोली, क्या तुम्हारे हाथ हैं ?
राखी बांधूंगी मैं नहीं, पापा से बोल मैं दूंगी,
चाकलेट देता नहीं, खाली मेरा हाथ है !
आपस के झगडे ये, अच्छे नहीं बहना री,
सबसे सौगात बड़ी, अपना ये साथ हैं !
---------------------------------------------------------------
(२)
सावन का मास आया, भय्या मोरे नहीं आए,
राखी बांधूंगी मैं किसे, मन घबराए हो !
कहे तू रुलाए भाई, काहे तू सताए भाई
पावन पर्व हैं आजा , बहना बुलाए हो !
नहीं मांगूंगी खजाना, खाली हाथ चले आना,
भय्या मेरे पास आजा, जिया खिल जाए हो !
सबको दे रघुराई, एक प्यारा प्यारा भाई ,
ताकि ये जहान सारा, खुशियाँ मनाए हो !
----------------------------------------------------------
(३)
राखी के पवन पर्व , आओ ये कसम खाएं ,
तोहफे में बहनों को , आजादी दिलाएंगे !
गली और नुक्कड़ों पे, खड़े सब लफंगों को ,
सौंपेंगे पुलिस को या, मार के भगायेंगे !
एक बार मौका देंगे, उनको सुधरने का,
फिर खोज खोज कर, राखी बंधवाएंगे !
ऐसा गर हो गया तो , बहने भी खुश होंगी,
फिर हम साथ साथ , खुशिया मनाएंगे !
----------------------------------------------------
(४)
सावन महीना आया, फोन किया बहना ने
चार दिन पहले ही, भैया हम आयेंगे !
पिंकी भी बहुत खुश, अमन मचाये शोर ,
दोनों का ये कहना है, मामा घर जायेंगे !
जीजा जी के लिए सूट, बहना के लिए साड़ी ,
बच्चों को खिलोने ढेरों, हम दिलवाएंगे !
जो कहेगी लेके देंगे, बस तुम चली आना,
तेरी राहों भैया भाभी, पलकें बिछायेंगे !
------------------------------------------------------
(५)
भूल से ही बाँधी चाहे, राखी कान्हा की कलाई ,
जब कोई नहीं साथ, वो ही आया भाई हैं !
भाई हो तो कृष्णा सा, आया जो पुकार सुन
जिसने पाँचाली की भी , इज्जत बचाई हैं !
कंस भी था एक भाई, बहना को कैदी किया,
भानजे के हाथों मरा, कड़वी सच्चाई है !
एक भाई रावण था, सुन झूठ बहना का,
भूल ऐसी कर बैठा, लंका भी गंवाई है ! ,
----------------------------------------------------
(६)
भाई बहाना का नाता, पावन पुनीत बड़ा,
इतिहास में भी पढ़ी, इसकी बड़ाई हैं !
भाई जब नहीं आए , परेशान बहना हो ,
भाई आने पर फिर, ख़ुशी घर आई है !
राखी का त्यौहार आया, खुश भाई बहना हैं,
माता पिता की भी आँखें, आज मुस्काई हैं !
जिस घर बहना न, पूछे उन्हें जाके कोई,
कितनी अखरती हैं , सूनी जो कलाई हैं !
----------------------------------------------------
(७)
सावन के महीने में, आता ये पावन पर्व ,
सभी के हर्षित मन , दे रहे बधाई जी !
कहूँ ओर हरियाली , तन पर हरी साडी ,
बहना ने हरी चूड़ी, खूब खनकाई जी !
भय्या का संदेसा पाके, भागी भागी चली आई,
आशीषों के दुआयों के, थाल लेके आई जी !
बहना को आते देख, भय्या को लगे है ऐसे,
गया हुआ बचपन, साथ लेके आई जी !
------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment